Rakesh Baloda Rakesh Baloda Author
Title: पथरी (किडनी स्टोन ) के लिए रामबाण कुलत्थ की दाल
Author: Rakesh Baloda
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लेटिन मे डोलीचस बाइफ्लोरस के नाम से पहचान रखनेवाली यह दाल हार्स ग्राम के नाम से भी जानी जाती है। भारत,नेपाल सहित अधिकाँश एशियाई देशों में...
लेटिन मे डोलीचस बाइफ्लोरस के नाम से पहचान रखनेवाली यह दाल हार्स ग्राम के नाम से भी जानी जाती है। भारत,नेपाल सहित अधिकाँश एशियाई देशों में सदियों से इसकी दाल का प्रयोग पथरी(किडनी स्टोन) में किया जाता रहा है।उष्ण प्रवृति का होने के कारण जाड़ों में अक्सर पहाड़ के लोग इसकी दाल का सूप पीते हैं।यह Iron का एक अच्छा स्रोत है तथा किडनी सहित उदर रोगों में भी काफी फायदेमंद होता है।
गहत की दाल को बनाने की विधि:
1 प्याज
6 लहशुन की कलियां
1 छोटा टुकड़ा अदरक
1 चुटकी हींग
1/2 चम्मच हल्दी पाउडर
1 चम्मच धनिया पाउडर
1/2चम्मच मिर्च पाउडर (आवश्यकतानुसार)
नमक (आवश्यकतानुसार)
1चम्मच गरम मसाला
सबसे पहले थोड़ी मात्रा में तेल को गर्म करें इसम पानी में भिंगोई गहत की दाल को हल्की आंच में पकाएं इसके बाद इसमें उपरोक्त मात्रा में हींग ,प्याज ,अदरक,लहशुन आदि डालें,तत्पश्चात 1 मिनट के बाद सारे मसाले नमक और मिर्च उपयुक्त मात्रा में मिलाएं और 1 मिनट तक भूनें इसके बाद इस 10 मिनट तक प्रेसर कुक करें,प्रेसर खुद रिलीज होने दें अब इसके ऊपर धनिये के पत्ते की बारीक कटे टुकड़ों को छिड़क लें और इसे भी मिला लें।पारंपरिक पहाड़ी गहत दाल तैयार हो गयी।इसे अन्य तरीकों से भी बनाया जा सकता है।

वैज्ञानिक इसे एन्टीहायपरग्लायसेमिक गुणों से युक्त मानते हैं साथ ही इसे Insulin के resistance को कम करनेवाला भी मानते हैं।इसके बीज के छिलकों में antioxidant गुण भी पाये जाते हैं Indian Journal of Medical Research में प्रकाशित शोध के अनुसार यह किडनी स्टोन को डिजोल्व करने के गुणों से युक्त एक दाल है।आयुर्वेदिक चिकित्सक भी इसकी दाल का प्रयोग अश्मरी,मूत्रल एवं Amenorrhea में करते हैं।NCBI में प्रकाशित एक शोध के अनुसार यह वजन को नियंत्रित करने के गुणों से युक्त प्रभाव भी रखती है।

पथरी (किडनी स्टोन ) के लिए एक  प्रयोग काफी उपयोगी है आप प्रयोग कराएं निश्चित लाभ मिलेगा
इसे आप क ख ग से याद कर सकते हैं
क-कुलत्थ के बीज/ककड़ी बीज
ख-खीरा बीज
ग-गोक्षुर बीज
इन सभी को सममात्रा में यवकूट कर चूर्ण बना लें और पथरी(किडनी स्टोन) के रोगी में 5 ग्राम प्रातः सायं की मात्रा में 1 महीने तक दें ।इस अवधि में रोगी को प्रचुर मात्रा में पानी लेने को कहें ताकि फोर्स्ड डाई यूरेसिस होता रहे ।

शिलाजीत के साथ इसकी विपरीत प्रकृति होने के कारण इसे शिलाजीत सेवन काल में नही देना चाहिए।

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